रविवार, 24 सितंबर 2017

पल्‍लू का इतिहास एक नजर में

पल्‍लू का इतिहास एक नजर में

:: पल्लू का इतिहास ::
पल्लू राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में रावतसर तहसील का एक कस्बा है। यह जंगल देश के सिहाग जाटों का ठिकाना था। पल्‍लू का प्राचीन नाम कोट कल्लूर था, जो बाद में इस ठिकाने के जाट सरदार की लड़की पल्लू जिसका  नाम था उसी केे नाम पर पल्लू हो गया।
पल्लू के बारे में एक कथा प्रचलित है कि मूगंधड़का नामक जाट का कोट कल्लूर पर अधिकर था। उसने डरकर दिल्ली के साहब नामक शहजादे से अपनी बेटी पल्लू का विवाह कर दिया। लेकिन वह मन से नहीं चाहता था, अतः उसने अपने दामाद को भोजन में विष दे दिया जो अपने महल में जाकर मर गया। कुछ देर बाद जाटने अपने बेटे को पता लगाने के लिए भेजा कि साहब मर गया या नहीं। उसने जैसे ही महल की खिड़की में मुंह डाला, क्रुद्ध पल्लू ने उसका सिर काट लिया और उसकी लाश को महल में छुपा लिया। इस प्रकार बारी-बारी से उसने पांचो भाइयों को मार दिया, इस पर जाट ने कहा -
                                  जावै सो आवै नहीं, यो ही बड़ो हिलूर (फितूर)।
                                  के गिटगी पल्लू पापणी, के गिटगो कोट किलूर ।।

पढिये प्राचीन पल्लू का प्राचीन इतिहास

युं तो पल्‍लू कोट के इतिहास बहुत लंबा चौडा है मगर कुछ हिस्‍से जो पाठकाें के लिये संजोया है वो ही प्रस्‍तूत है। उम्‍मीद है यह हमारे पाठकों के लिये मददगार साबित होगा।
           budhgirgosvami.blogspot.com                                              Foto +Vinod Puri Goswami 
राजस्‍थान राज्‍य के हनुमानगढ़ जिले का कस्बां पल्लू ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इसकी भौगोलिक स्थिति बाड़मेर -जैसलमेर की तरह है। कस्बे में पुरा महत्व की सामग्री यत्र-तत्र बिखरी पड़ी है। पुरातत्व विभाग की अनदेखी से यह धरोहर उजड़ रही है। पर्यटन विभाग भी इस ओर से उदासीन है। गांव में मध्य युग से पूर्व चूने का एक किला था। इसका निर्माण तीन चरण में हुआ। मध्य युग में यह किला आबाद रहा। यह क्षेत्र महमूद गजनवी के आक्रमण की जद में भी रहा। गजनवी ने ईस्वी सन 1025 में यहां आक्रमण किया। इतिहास में वर्णित युद्ध कथाओं से परे इसकी जीवंतता आज तक बनी है। सैकड़ों बीघा भूमि क्षेत्र में आज भी मानव हड्डियां तथ्यों पर अमिट चादर ओढ़े हुए है। यहां पुरातत्व को संरक्षण दिया जाए तो अब भी काफी कुछ बचा है जिसे संरक्षित किया जा सकता है। रियासत काल में इटली के पुरावेता लुईजी पिरो टैसीटोरी ने यहां वर्ष 1917 में पुरातन रियासत कालीन थेडऩुमा किले की खुदाई करवाई। इसमें कई दुर्लभ कृतियां व सिक्ïके आदि मिले। ये दिल्ली में राष्ट्रपति भवन तथा बीकानेर  संग्रहालय मेें रखे हैं। स्वामी केशवानंद भी यहां से काफी पुरा सामग्री ऊंटों पर लाद कर संगरिया ले गए थे। वे आज भी संगरिया में ग्रामोत्थान संग्रहालय में है।  टैसीटोरी का देहांत होने से यहां खुदाई बीच में रह गई और इस प्रकार पुरातन सभ्यता से जुड़े अनेक रहस्य जमीन में दबे ही रह गए। इस दौरान यहां संग्रहालय बनाने के लिए पुरातत्व निदेशक ने स्वामी केशवानंद के साथ निरीक्षण किया। परन्तु धनाभाव के कारण यहां संग्रहालय नहीं बन सका। इस कारण पुरा धरोहर का संरक्षण भी नहीं किया जा सका। कस्बे में माता ब्रह्माणी, सरस्वती व महाकाली का मंदिर है। ये पुराने किले की थेहड़ पर बना है। माता की दूर-दूर तक मान्यता है। वर्ष भर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर में स्थापित मूर्तियों पर जैन सभ्यता की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है। किले पर बसे घरों में मकान बनाते समय आज तक पत्थर से बनी मूर्तियां निकलती हैं। इन अनेक पत्थरों पर जैन तीर्थंकरों की प्रतिमा उत्कीर्ण होने से यहां की पुरानी सभ्यता के लोगों का जैन मतावलम्बी होना माना जाता है। हाल ही कृषि पर्यवेक्षक भंवरसिंह नाई के घर खुदाई के दौरान सुंदर मूर्ति निकली जिसकी सूचना प्रशासन को दी गई। प्रशासन की अनुमति से प्रतिमा श्रीगंगानगर मेंं जैन मंदिर की शोभा बढ़ा रही है। इससे पता चलता है कि यहां थेहड़ में अनेक अवशेष दबे हैं। वर्तमान में यहां हिन्दू रीति-रिवाज से पूजा-अर्चना होती है। अन्य स्थलों में यहां के जोहड़ (ढाब) में बोढ़ डडूका खेजड़ा भी ख्याति प्राप्त है। यह करीब 1300 सौ वर्ष पुराना माना जाता है। सिहाग गौत्र के जनकराव के पुत्र माणक के साथ उनकी पत्नी लाछा डूडण इस खेजड़े से सत्रह कदम दक्षिण में सती हुई थी। इस प्रकार यह खेजड़ा सती लाछा डूडण की याद दिलाता है। कस्बे में सादुल नामक वीर सेनापति का मंदिर, शिव मंदिर, पंच मुखी बालाजी मंदिर तथा किले की प्राचीन सुरंग भी दर्शनीय है। अतीत में किले के दक्षिण-पश्चिम हिस्से पर बावड़ी थी जो अब जमीदोंज हो गई। अतीत में पल्लू कस्बा समृद्ध तथा वैभवशाली सभ्यता का विराट स्तम्भ रहा है।
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:: माता जी  के द्वारपाल सादूलाजी का मंदिर::  

पल्लू  में  श्री  ब्रहमाणी  माताजी  के मंदिर  के पहले माता  जी के द्वारपाल  श्री  सादूला  जी  का  मंदिर  बना हुआ है ! इस मंदिर में  सादूलाजी  की एक सफेद  मारबल  की मुर्ति  लगी हुई  है !

धार्मिक  मान्यताओ  के अनुसार  श्री  सादूला जी  को  माँ  ब्रहमाणी ने  एक श्रेष्ठ  पद  दिया  है!

 श्री  सादूला  जी  को  माँ  ब्रहमाणी  से एक वरदान  मीला  है  की जो भी भक्त जन  माता  जी मंदिर  के धोक लगाने  और  दर्शन  करने  आते  है  उनको  माता  जी  दर्शन  करने से  पहले  माता  जी  के द्वारपाल  श्री  सादूला जी  के मंदिर  में धोक  लगानी  होती और परसाद  चढ़ाना     होता  है !
अगर  कोई  भी  भक्त जन  ऐसा  नहीं  करता है  तो उसकी  यात्रा  सफल  नहीं  होती है !इसके अलावा  यदि कोई  भी  यात्री  जान बूझकर  इस  नियम  को  भंग  करता  है  उसको  श्री  ब्रहमाणी  माता  जी  दण्डित भी  कर सकती  है !
माता  जी  मंदिर पुजारीयों   को भी  इस  नियम पालन  करना  होता  है!

 माता के सभी भगतजनों से निवेदन है कि माता के मंदिर दर्शन से  पहले श्री सादूला जी के मंदिर के धोक जरुर लगायें !       जय  माता दी !
                              POTO:- Budhgir Gosvami Pallu



:: मंदिर जाने का मार्ग ::
पल्लू भारत के राजस्थान राज्य में हनुमानगढ़ जिले में स्थित है। भारत के दो बड़े शहर, दिल्ली और जयपुर से सड़क मार्ग द्वारा पल्लू जा सकते हैं।
  • दिल्ली से रोहतक, मेहम, हाँसी, हिसार, भादरा, नोहर, रावतसर होते हुए पल्लू जा सकते हैं। जिसक़ी दूरी ३५४ किलोमीटर हैं। 
  • जयपुर से चौमूं, रींग़स, सीकर, फतेहपुर, रतऩग़ढ़, सरदारशहर होते हुए पल्लू जा सकते हैं। जिसक़ी दूरी ३१५ किलोमीटर हैं। 
पल्लू का निकटतम रेलवे स्टेशन नोहर है। नोहर रेलवे स्टेशन, जयपुर एवं श्री गंगानगर रेल मार्ग पर स्थित हैं। पल्लू का निकटतम हवाई अड्डा जयपुर और दिल्ली है।
अगली पोस्‍ट में बतायेगें आपकों और भी महत्‍वपूर्ण जानकारी  भरी पोस्‍ट मिलती रहेगी ।
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:: मंदिर का पता ::
श्री ब्रह्माणी माता का मंदिर
(प्राचीन गढ [किला] कल्लूर के खण्डहर पर स्थित) पल्ल्लो
गांव: पल्लू
तहसील: रावतसर
जिला: हनुमानगढ़
पिन कोड: 335524
राजस्थान, भारत
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:: ठहरने का स्थान ::
पल्लू में निम्नलिखित धर्मशालायें निशुल्क उपलब्ध है।

    01. जय दुर्गे ब्रह्माणी भजन मंडली धर्मशाला 
        (भक्तों की पहली पसंद)
    02. कालावाली सेवा समिति
    03. रामा मंडी
    04. पीलीबंगा वाली
    05. पारिक हॉल
    06. नोहर वालो की धर्मशाला
    07. सादूल शहर वाली धर्मशाला
    08. कमलाटोला धर्मशाला
    09. ब्राह्मण समाज धर्मशाला
    10. जाट धर्मशाला
    11. कुम्हार धर्मशा
माज धर्मशाला
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:: आरती ::
श्री ब्रह्माणी माता के मंदिर में दो आरती होती है।
    01. श्री ब्रह्माणी माता जी की आरती
    02. श्री काली जी की आरती

श्री ब्रह्माणी माता जी की आरती

जय अम्बे गौरी, मइया जय आनन्द करनी ।
 तुमको निश-दिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव री ॥


मांग सिंदूर विराजत, टीको मृग मद को ।

कमल सरीखे दाऊ नैना, चन्द्र बदन नीको ॥
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।

रक्त पुष्प गलमाला, कण्ठन पर साजै ॥
केहरि वाहन राजत, खड़ग खप्पर धारी ।

सुर-नर-मुनि-जन-सेवत, सबके दुखहारी ॥
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।

कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति ॥
शुम्भ निशुम्भ विडारे, महिषासुर - घाती ।

धूम्र विलोचन नैना, निश दिन मदमाती ॥
चण्ड मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।

मधु कैटभ दो‌ऊ मारे, सुर भय हीन करे ॥
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी ।

आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
चौसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरुं ।

बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरुँ ॥
तुम हो जग की माता, तुम ही हो भरता ।

भक्‍तन् की दुःख हरता, सुख-सम्पत्ति करता ॥
भुजा अष्ट अति शोभित, वर मुद्रा धारी ।

मन वांछित फल पावे, सेवत नर नारी ॥
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्री पल्लू कोट में विराजत, कोटि रतन ज्योति ॥

श्री अम्बे भवानी की आरती, जो को‌ई नर गावे ।

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे ॥
जय अम्बे गौरी, मइया जय आनन्द करनी ।
 तुमको निश-दिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव री ॥
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काली जी की आरती


मंगल की सेवा सुन मेरी देवा, हाथ जोङ तेरे द्वार खडे
पान सुपारी धवजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट क़रें ।


सुन जग्दम्बे कर न विलम्बे, सन्तन के भंडार भरे

सन्तान  प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे 


बुद्धि विधाता तू जगमाता, मेरा कारज सिद्ध करे

 चरण कमल का लिया आसरा, शरण तुम्हारी आन परे ।
जब जब पीर पडे भक्तन पर, तब तब आए सहाय करे

सन्तन  प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ॥
बार बार तै सब जग मोहयो, तरुणी रुप अनूप धर

माता होकर पुत्र खिलावें, कही भार्या बन भोग करे ।

संतन सुखदायी, सदा सहाई, संत खडे जयकार करें

संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ॥
ब्रह्मा, विष्णु, महेश फल लिए भेंट देन सब द्वार खड़े

अटल सिंहासन बैठी माता, सिर सोने का छत्र धरे ।

वार शनिचर कुंकुमवरणी, जब लुंकुड पर हुक्म करे

संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ॥
खड्ग खप्पर त्रिशुल हाथ लिये, रक्तबीज कुं भस्म करे

शुम्भ–निशुम्भ क्षणहिं में मारे, महिषासुर को पकड धरे ।

आदित वारी आदि भवानी, जन अपने को कष्ट हरे

संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ॥
कुपित होय कर दानव मारे, चण्ड–मुण्ड सब चुर करे

जब तूम देखो दया रूप हो, पल में संकट दूर टरे ।


 सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता, जन की अर्ज कबूल करे

संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ॥

सात बार महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे

सिंह पीठ पर चढी भवानी, अटल भुवन में राज करे ।

दर्शन पावें मंगल गावें, सिध्द तेरी भेंट धरें

संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ॥
ब्रह्मा वेद पढ़ तेरे द्वारे, शिवशंकर हरि ध्यान धरे

इंद्र-कृष्ण तेरी करे आरती, चंवर कुबेर डुलाय रहे ।
जय जननी जय मातुभवानी, अचल भुवन में राज करे

संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ॥
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